पीले प्याला हो मतवाला, प्याला नाम अमीरस का रे।।
बालपन सब खेल गँवाया, ज्वान भयो नारी बस का रे।
वृद्ध भयो तन काँपन लागे, खाट पर न जाय खसका रे।।
नाभि कमल बिच है कस्तूरी, जैसे मिरग फिर बन का रे।
बिन सतगुरु इतना दुख पाया, बैद मिला नहिं इस तन का रे।।
मात पिता बन्धू सुत तिरिया, संग नहीं कोई जाय सखा रे।
जब लग जीवै भजन भक्ति करु, धन यौवन है दिन दस का रे।।
जन्म मरण से बचना चाहो, तो छोड़ो कामिनि चसका रे।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, नख सिख पूर रहा विष का रे।।
— गुरु कबीर साहब